Tuesday 25 April 2017

मजबूरी या निवारण : नक्सलवाद पर एक कहानी

लेखक: डॉ. नीरज मील 'नि:शब्द'



        अजेय की पढाई पूरी हुई। बहुत होशियार था पढाई में। ग्रेजुएशन के समय एनसीसी भी रही है। इसी दौरान उसने युद्ध कौशल में प्रवीणता भी हासिल की। हालांकि प्रशिक्षण अल्प ही था लेकिन अजेय ने सिखा ज्यादा। इसी के चलते उसका रुझान हुआ सेना में जाने का लेकिन  चयन नहीं हो पाया। अंतत: उसको CRPF  में सहायक कमान्डेंट के पद हेतु चुन लिया गया। कुछ समय की नौकरी के बाद उसे प्रमोशन मिल गया और कमान अधिकारी बना दिया गया। उसे पढने का बड़ा शौक था। 

कमान अधिकारी(अजेय) - सुकमा चलो और हमें कम से कम एक नक्सलवादी को जिंदा पकड़ना है।
टुकड़ी के सिपाही - ऐसा ही होगा।

        छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में काफी देर मुठभेड़ चली कुछ जवान शहीद हो गए जैसा कि सामान्य बात है। अजेय को नक्सलवादियों ने अगवा कर लिया। राजनीती में भूचाल आ गया। अब क्या होगा? सभी को चिंता सता रही थी। जहाँ एक और अजेय के बच्चे खिलोनो के साथ पापा का इन्तेजार कर रहे थे, पत्नी अपने सुहाग की रक्षा के लिए मन्नते मांग रही थी, बूढी माँ अपने लाडले के लिए पत्थर हो रही थी। वही दूसरी ओर सताधारी सोच रहे थे कि अखबारों में सरकार की बेइज्जती होगी। और विपक्ष सोच रहा था कि इसका फायदा कैसे उठाया जाए? सताधारी सोच रहे थे कि अखबारों में सरकार की बेइज्जती होगी, इससे कैसे बचा जाये? और विपक्ष सोच रहा था कि इसका फायदा कैसे उठाया जाए? अखबार वाले खबर की प्रतीक्षा में थे और जनता मौन थी। 

        अजेय को होश आया तो अपने आपकों एक कोठरीनुमा एक गुफा में पाया। सब ओर अधेरा सा ही था। केवल थोडा सा प्रकाश आ रहा था।  ऐसा लग रहा था कि सुबह हो चुकी थी। एक आदमी चाय का प्याला लेकर सामने खड़ा था।

नक्सलवादी - साहेब चाय पी लो।
अजेय - नहीं मैं नहीं पीऊंगा। क्या पता... 
नक्सलवादी -...... ये लीजिये। इतना कहकर चाय की चम्मच उठाकर चखने लगा और बोला ।।ये देखिये साहब ज़हर नहीं है इसमें। हम आपको बुरे जरुर लग रहे हैं लेकिन वास्तव में हम भी इसी देश के वासी है.....
अजेय - तो फिर हम पर गोली क्यों चलते हों हमें क्यों मारते हों ?
नक्सलवादी - क्या करें साहेब!....(कहते हुए वही बैठ जाता है) ....... आप हम पर चलाते हो तो हम भी अपनी सुरक्षा हेतु कुछ तो करें!
अजेय - लेकिन गोली चलाने की नौबत ही क्यों लाते हो?
नक्सलवादी- कौन जंगलों में भटकना चाहेगा? मजबूरी है ..............
अजेय - ..........क्या मजबूरी! इसे देश के साथ गद्दारी कहते है............
नक्सलवादी - तो फिर साहेब बफोर्स घोटाला, कोयला घोटाला उसे क्या कहते है ?
अजेय - वो भी ..........(रुक जाता है कहते कहते )
नक्सलवादी - रुक क्यों गए साहेब? बोलो न............मैं बताता हूँ गद्दारी वही है और हम तो मजबूर है बस निवारण कर रहे हैं। 
अजेय - तुम्हे बरगलाया जा रहा है, तुमको यूज किया जा रहा है क्योकि तुम अशिक्षित हो।......
नक्सलवादी- नहीं साहेब मैं बीएचयू से डॉक्टरेट(पीएच. डी) हूँ। आप तो शायद ग्रेजुएट ही होंगे।
अजेय- मैं नहीं मानता, अगर ऐसा है तो फिर ये काम क्यों कर रहे हो?
नक्सलवादी-साहेब क्या करे मजबूरी ही है नहीं तो......
अजेय- कैसी मजबूरी?
नक्सलवादी- तो फिर क्या करें?
अजेय- तैयारी करो, कॉलेज में या यूनिवर्सिटी में पढाओ। 
नक्सलवादी- उससे क्या होगा साहेब?
अजेय- चालीस पचास हज़ार तो हर किसी कालेज या यूनिवर्सिटी में आसन से मिल जायेंगे।
नक्सलवादी-क्या कहा साहेब चालीस पचास हज़ार! साहेब आप भी बड़े जिंदादिल आदमीं हों जो इस स्थिति में भी मजाक कर रहे हो ।
अजेय-मज़ाक! वो कैसे?
नक्सलवादी- साहेब अगर कोई भी प्राइवेट यूनिवर्सिटी या कोलेज बीस हज़ार से ऊपर दे दे तो में नक्सलवाद छोड़ देंगे लेकिन ससुरा देते  नहीं हैं ।
अजेय-इसके अलावा कोई और मजबूरी?
नक्सलवादी-साहेब हम सब लोगों में ज्यादातर उच्च शिक्षित है, और सभी बेरोजगार हैं ...............ऊपर से सरकार की उदासीनता और भ्रष्टाचार के चलते पहले हमसे हमारी खेती भी छीन ली और उसके बाद हमारा विरोध करने का बुनियादी हक़ भी छीन लिया गया है। लेकिन साहेब हमारे ऊपर आप गोलिया बिना किसी वजह के क्यों बरसा देते हैं ?
अजेय-क्या करें यार हमें भी ऊपर से ऑर्डर ही मिलते है 
नक्सलवादी-साहेब सरकार ही अगर चाहे तो सब कुछ हो सकता है लेकिन वो ही तो नहीं चाहती है, वरना क्यों किसी को मजबूर करें? क्यों नागरिकों को संविदा में नौकरी में अल्प वेतन देकर शोषण करें, क्यों बेरोज़गारी फैलाये? क्यों भ्रष्टाचार फ़ैलने दे? क्यों उद्योगपतियों को ही तव्वजों देती है ? हम वो आदीवासी है साहेब जो गाय का दूध नहीं निकालते. क्योंकि उस दूध पर पहला हक उसके बछड़े का है, हम  जमीन को अपनी मां मानते हैं, जंगलों को ही अपना समाज मानते हैं। सरकारों ने कोर्पोरेट घराणो को वो बेशकिमती जमीन लगभग मुफ़्त में दी है और उनका कब्जा जमाने के लिये आप जैसे हमारे ही  किसान भाईयों के बेटों को उनके सामने कर रखा है। अब मरना हमी को है। उनका कभी भी बाल भी बांका नहीं होगा जो जमीन पर कब्जे कि फिराक में बैठे हैं। बाकी न हमें आरक्षण चाहिए, ना नौकरी, ना भारत से अलग होना चाह रहे हैं। सरकार बताती क्यों नहीं कि हमारी लड़ाई क्या है...? और हां ऐसे बहुत सारे प्रश्न है जिनके देश में खड़े होने की वजह से नक्सलवाद जैसी समस्या मौजूद है और हम जैसों को हथियार उठाकर नक्सलवादी बनने को मजबूर कर करती है। कह देना अपनी सरकार से......
अजेय-भाई मैं भी मजबूर हूँ और कंफ्यूज भी........(इतने में पीछे से थोडा सा कुछ चुभने जैसा दुर्द होता है और फिर बेहोश)

            जब अजेय को होश आता है तो अपने को सडक के किनारे पड़ा हुआ पाता है। सभी के चेहरों पर प्रसनन्ता आ जाती है। सरकार की इज्जत बच जाती है,पत्नी का सुहाग और माँ का लाडला..लेकिन विपक्ष मायूस हो जाता है।नक्सलवाद मजबूरी है या निवारण? अजेय इस प्रश्न के जवाब के लिए फ़ोर्स छोड़कर घर आ जाता है। लेकिन फिर से उलझ जाता है अपनी ग्रहस्थ जीवन में .....आज सुकमा में फिर से 26 जवानों के शहीद हो जाने पर ..............वही प्रश्न फिर से खड़ा हो जाता है कि  नक्सलवाद मजबूरी है या निवारण?...........
* नोट- यह एक कहानी मात्र है...
Image Source: Google search No Copywrite
                                                                                                                               Any Error? Report to Us


                                                                *Contents are Copyright.

No comments:

Post a Comment