Saturday 20 August 2016

सच कबड़ा होता है,

                                                                                     लघु कथा 
                                                                     सच कबड़ा होता है

"पापा ! आप  न ये गुटखा खाना छोड़ दोमुझे अच्छा नहीं लगता !""ठीक है बेटा ! मैं कल से ही छोड़ दूँगा ।"पर दूसरे दिन भी फूले हुए होंठ बता रहे थे कि बाप ने बेटे की बात नहीं मानी थी । शाम हो चली थी और बेटा घर नहीं लौटा था कालेज से । पिता ने चिंता करते हुए गाड़ी कालेज की तरफ दौड़ा दी । वहाँ देखा कि बेटा कालेज के पास नशे में धुत्त है ।
शब्द मसीहा


"ये क्या हाल बना रखा है  तुमने ड्रिंक भी किया है ?"
नहीं पापा ! आपने सच नहीं बोला था ।""तो ये क्या तरीका है तुम खुद को नशे में डुबो दोगे !""पापा ! सच कबड़ा होता है !"बाप को अपने तुतलाते बेटे पर हंसी आ गयी ।
"पागल ! इतना प्यार करता है रे कोई ?"
बाप को एहसास हो गया था सच कड़वा होता है पर मीठा लगता  है जब कोई अपना कहता है । अगले ही पल गुटखा जमीन पर था और बेटा बाहों में ।
शब्द मसीहा


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