Wednesday 17 February 2016

POET ON Spring बसन्त

स्वर्ग का नूर बसता है बसन्त में, ज़िन्दगी का सूर बसता है बसन्त में !
खिलते हैं प्रकृति के रंग सब ओर तभी जीवन में हर रंग जमता है बसन्त में !!

                    प्यार का सागर जब प्रकृति में  मारता है हिलोर, तब दिल भी चहक उठता है उमंग से बसन्त में !
                    मनु प्रकृति की गोद में महसूस करता है खुद को, और धरा भी खिल-खिला उठती है जब बसंत में !!
कवि की कलम उठकर जब नहीं रुकती कागज पर, महफ़िल ऐसे ही रंग जमाती है बसन्त में !
हर उम्र को सैलाब का सुकून देती है ज़िन्दगी, हर जीवन में ऐसा पड़ाव आता है बसन्त में !!
                           सर-सर सरिता गाती है ,झर -झर झरने झरते है, उमड़-उमड़ पर्वत भी उमड़ते है बसन्त में !
                     हर रंग निखरता है, हर तरफ छटा बिखरती है, तब हर नदी को एक 'नीरज' मिलता है बसन्त में !!

                                                                    **********
                                                                                              ----   डॉ. नीरज मील 

1 comment:

  1. बहुत अच्छा गुड वैरी गुड

    ReplyDelete