डॉ. नीरज मील
"जिसकी आँखे सूरज जैसी तो नहीं लेकिन उससे कम भी नहीं थी, होठ गुलाब की पंखुड़ियों के माफिक गुलाबी नहीं थे लेकिन रंगहीन भी नहीं थे, उसके बाल काली घतावाओं से गहरी नहीं थी, न उसकी आँखे झील सी गहरी थी पर हाँ उसकी एक आँख में एक काला तिल जरुर था।"
जैसा कि प्रेम में हर किसी के
साथ कुछ न कुछ अलग अवश्य होता है। बस कुछ लोग तय कर लेते
है उसको और कुछ महसूस। एसे ही एक युवा था, शेर जैसा रौबीला और दिलेर।
उसे कॉलेज के पहले वर्ष में ही एक लड़की से प्रेम हो गया। जिसकी आँखे सूरज जैसी तो नहीं लेकिन उससे कम भी नहीं थी, होठ गुलाब की पंखुड़ियों के
माफिक गुलाबी नहीं थे लेकिन रंगहीन भी नहीं थे, उसके बाल
काली घतावाओं से गहरी नहीं थी, न उसकी आँखे झील सी गहरी थी
पर हाँ उसकी एक आँख में एक काला तिल जरुर था। दोनों खूब मिलते, बातें करते, और एक दूसरे की आँखों में
खोये भी रहते। उनका यह प्रेम स्नातकोत्तर तक खूब परवान चढ़ा। रोज़ अपलक एक दूसरे को
निहारते रहते। इस दौरान न लड़के ने अपनी सीमा लांघने की कभी कोशिश की
और न लड़की के दिल में ऐसा कोई ख्याल आया। थोडा समय बीता दोनों ने शादी
कर ली।
थोड़े दिन गुजरे, प्रेम ठंडा पड़ने लगा। एक
स्थिति ऐसी भी आई कि लड़का लड़की के प्रेम पाश से मुक्त सा हो गया। एक दिन शबनमी
सुबह में नदी के किनारे दोनों बैठे ही थे कि अचानक से लडके का ध्यान लड़की
के चहरे पर गया और उसकी आँख का काला तिल देखकर बोला अरे, तुम्हारी आँख में तिल कब बन गया ?' लड़की के मुह से भी तपाक से
निकल पड़ा कि 'जबसे तुम्हारे प्रेम में नुक्स पैदा हो गया।' और आगे वही हुआ जो होना था । जहाँ प्रेम में मीन-मेख शुरू हो
जाती है वहां प्रेम ख़त्म होने लग जाता है और रिश्ते टूट जाते हैं। यही इन दो के
मध्य हुआ होगा।
खैर, ज़िन्दगी यहाँ थम भी
जाती है और बेबस भी हो जाती है। एक प्रश्न हर किसी के दिमाग में जरुर आता और कि हे
मनुष्य, कब तक तू दूसरों में दोष ही खोजता फिरेगा ? तू ये समझाने और समझने की कोशिश कब करेगा कि ये दोष या द्वेष? जब तू
खुद अपने दोषों की बदसूरती देख लेगा तो दूसरों के दोष शायद नजर ही नहीं आयेंगे। न उनकी तुम्हे फ़िक्र होगी और न ही अफ़सोस। असर होगा तो खुद में
बदलाव और सुधर का। ये तय है रिश्ते बनेंगे भी निभेंगे भी. यही जीवन की सार्थकता भी
है।
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Nice
ReplyDeleteNice
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