Friday, 19 August 2016

समाज सेवक

लघु कथा 

समाज सेवक

                        लेखक - केदार नाथ 'शब्द मसीहा'

"डाक्टर साहब ! मुझे अपना गुर्दा बेचना है."

" क्या बात कर रहे हो ? यहाँ क्या हम धंधा करते हैं? हम डाक्टर हैं कसाई नहीं ! तुमने क्या समझ रखा है हमारे अस्पताल को ?"

" 
बूचडखाना"

" क्या बकबास है! मैं अभी तुम्हारी शिकायत पुलिस में करता हूँ. कल ही हमारे फ्री आपरेशन केम्प में कमिश्नर आये थे उद्घाटन करने, अब तुम्हारी खैर नहीं!"

" डाक्टर साहब ! जरा ये वीडियो देख लीजिये...इसमें कौन हैं? डाक्टर है या कसाई !"

फ़ोन पर वीडियो देखते ही डाक्टर के माथे पर पसीने की बूँदें उभर आयीं.

" चलिए! पुलिस को फोन कर दीजिये...मैं यहीं बैठता हूँ."

" तुम मेरे कमरे में चलो ! यार तुम भी न कैसी बात करते हो...कुछ काम तो ऐसा- वैसा करना पड़ता है. चेरिटी करते रहे तो नया अस्पताल कैसे बनायेंगे ? वैसे भी आदमी तो एक गुर्दे पर जी ही लेता है.....और उसने नोटों का बण्डल उसके हाथों में रख दिया."

" शुक्रिया ! डाक्टर साहब...आपने मेरा काम आसान कर दिया मैं चलता हूँ. आज शाम को समाज सेवकों की मीटिंग है ."


शब्द मसीहा

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