लघु कथा
समाज सेवक
लेखक - केदार नाथ 'शब्द मसीहा'
"डाक्टर साहब ! मुझे अपना
गुर्दा बेचना है."
" क्या बात कर रहे हो ? यहाँ
क्या हम धंधा करते हैं? हम
डाक्टर हैं कसाई नहीं ! तुमने क्या समझ रखा है हमारे अस्पताल को ?"
" बूचडखाना"
" क्या बकबास है! मैं अभी तुम्हारी शिकायत पुलिस में करता हूँ. कल ही
हमारे फ्री आपरेशन केम्प में कमिश्नर आये थे उद्घाटन करने, अब तुम्हारी खैर नहीं!"
" डाक्टर साहब ! जरा ये वीडियो देख लीजिये...इसमें कौन हैं? डाक्टर है या कसाई !"
फ़ोन पर वीडियो देखते ही डाक्टर के माथे पर पसीने की बूँदें उभर
आयीं.
" चलिए! पुलिस को फोन कर दीजिये...मैं यहीं बैठता हूँ."
" तुम मेरे कमरे में चलो ! यार तुम भी न कैसी बात करते हो...कुछ काम
तो ऐसा- वैसा करना पड़ता है. चेरिटी करते रहे तो नया अस्पताल कैसे बनायेंगे ? वैसे भी आदमी तो एक गुर्दे पर जी ही लेता है.....और उसने नोटों का
बण्डल उसके हाथों में रख दिया."
" शुक्रिया ! डाक्टर साहब...आपने मेरा काम आसान कर दिया मैं चलता
हूँ. आज शाम को समाज सेवकों की मीटिंग है ."
शब्द मसीहा
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